एंजिला मेरीची का जन्म सन 1470 में इटली के गरदा तालाब के तट पर स्थित दोचेनजानों (Docenzano) स्थान पर हुआ। बचपन से ही वह ईश्वर की सेवा में तत्पर रहती थी। उसे सादगी तथा हदय की पवित्रता से प्यार था। दस वर्ष की आयु में एंजिला और उसकी बहन अनाथ हो गये और सालो शहर में उनके मामा के घर रहने लगी। जब विलेपन संस्कार तथा पवित्र यूखारिस्त ग्रहण किये बिना उसकी बहन की आकस्मिक मृत्यु हुई तो एंलिजा बहुत विचलित हो गयी। वह संत फांसिस के तृतीय समूह की सदस्य बन गयी तथा प्रार्थना में बहुत ध्यान देने लगी। वह अपनी बहन की आत्मा की शांति के लिये तपस्या तथा उपवास के कार्यों के साथ प्रार्थना करने लगी। अपनी निर्मल सादगी तथा विश्वास के बीच उसने ईश्वर से प्रार्थना की मुझे मेरी बहन की वास्तविक स्थिति का ज्ञान करा दे। माना जाता है उसे ईश्वर का दर्शन हुआ जिसके द्वारा ज्ञान प्राप्त हुआ कि उसकी बहन स्वर्ग में संतों की संगति का अनुभव कर रही है।
जब वह बीस साल की थी तो उसके मामा का देहांत हुआ तब वह पितृभवन दोचेनज़ानों वापस लौटी। वहाँ पर उसने समय-समय पर अपने इलाके की युवतियों को एकत्र कर उन्हें ख्रीस्तीय धर्म की शिक्षा प्रदान की। माना जाता है कि एक दिन उसे एक दर्शन में युवतियों को प्रशिक्षण प्रदान करने वाले एक धर्मसमाज की स्थापना करने की प्रेरणा मिली। उस समय उसकी आयु 23 साल की थी। दोचेनजानों में जो पाठशाला उसने युवतियों के लिये चलायी उसका प्रभाव बहुत दूर तक पडा कि ब्रेशिया शहर की ओर से निमंत्रण मिला कि वे वहाँ आकर उसी तरह की एक पाठशाला की स्थापना करे। सन 1524 में पवित्र भूमि की तीर्थ यात्रा करते समय क्रेत द्वीप में वह अचानक अंधी बन गयी, पर उसने अपनी यात्रा को जारी रखा। वापसी के दौरान जिस जगह पर वह अंधी हो गयी थी उसी जगह पर क्रूसित प्रभु की मूर्ति के सामने प्रार्थना करने समय उसे अपनी आँखों की रोशनी पुनः प्राप्त हुई। सन 1525 में जब वह रोम की यात्रा पर गयी तो संत पापा क्लेमेंत सातवें ने युवतियों के बीच उसके अनोखे कार्यो का विवरण सुनकर उससे रोम में ही रूकने का आग्रह किया। परन्तु लोकप्रियता तथा नाम कमाने की इच्छा के प्रलोभनों को ठुकरा कर एंजिला ब्रेशिया वापस लौट गयी। अंत में 25 नवम्बर 1535 को एंजिला ने 12 कुँवारियों को साथ लेकर ब्रेशिया के संत एफ्रा के गिरजाघर के एक पास एक छोटे भवन में उर्सेलिन धर्मसमाज की स्थापना की। उन युवतियों के साथ मिलकर एंजिला बच्चों को धर्मशिक्षा प्रदान करने, गरीबों की सेवा करने तथा बीमारों की सेवा करने लगी। जब भी उनकी सेवा पाने वालों में पापमय जीवन बिताने वाले पाये जाते थे तो एंजिला ने उनके ईश्वर से उनके मेलमिलाप कराने तथा उनके नये जीवन को शुरू कराने के लिये भरपूर कोशिश की। इस धर्मसमाज के प्रधान धर्माधिकारी के रूप में पाँच साल की सेवा के पश्चात 17 जनवरी 1540 को एंजिला का निधन हुआ। ब्रेशिया के संत एफ्रा के गिरजाघर में उसके पार्थिक शरीर को दफनाया गया। संत पापा क्लेमेंट तेरहवें ने सन 1768 में उनको धन्य घोषित किया तथा संत पापा पियुस सातवें ने सन 1807 में संत घोषित किया।