पहले सन्त पौलुस को साउल के नाम से जाने जाते थे और वे ख्रिस्तियों पर प्रभु येसु में उनके विश्वास के कारण अत्याचार करते थे। इस ‘नेक और महान’ काम के लिए बड़े-बड़े नेताओं और धर्मगुरुओं का हाथ उनके ऊपर था। वे समझते थे कि वे जो भी कर रहे हैं वह सही है और ईश्वर का कार्य है। इसलिए वे बड़े उत्साह के साथ उस काम में लगे रहते थे। उन्होंने बड़ी निर्दयता के साथ ईसाइयों पर भरपूर अत्याचार किया। प्रभु येसु कहाँ ख़ामोश रहने वाले थे, क्योंकि साउल उनके शरीर, मसीही समुदाय पर अत्याचार कर रहे थे। जब साउल का सामना प्रभु येसु से हुआ तो वे पूर्ण रूप से बदल गये।
सन्त पौलुस का यह हृदय परिवर्तन हमारे लिए महत्वपूर्ण और आदर्श है क्योंकि उसके बाद वे पूर्ण रूप से बदल गये। उनका उत्साह अत्याचार से बदलकर सुसमाचार प्रचार के लिए बदल गया, उनके परिवर्तन के कारण उनके शुभ चिंतक ही उनके दुश्मन बन गए। उन्होंने सुसमाचार के कारण विश्वासियों पर जो भी अत्याचार किए थे, उसी सुसमाचार के लिए उससे भी अधिक कठोर अत्याचार और कष्ट सहे। जब ईश्वर हमें छू लेते हैं तो यही होता है। सब कुछ बदल जाता है, हम उनके हाथों में उनके संदेश को संसार के कोने-कोने में ले जाने के लिए माध्यम बन जाते हैं।