विन्सेंट पल्लोट्टी का जन्म सन् 1795 में रोम में हुआ। 23 वर्ष की आयु में उनका पुरोहिताभिषेक हुआ। उन्होंने ईशशास्त्र में डॉक्टर की उपाधि हासिल की। सपियेन्ज़ा विश्वर्विध्यालय में उनकी नियुक्ति प्राध्यापक के रूप में हुइ। उस कार्य से उन्होंने त्यागपत्र दे दिया और अपना जीवन मेषपालीय कर्य के लिए समर्पित किया। उनकी ख्याति पूरे रोम शहर में फैल गयी। उन्होंने मोचियों, दर्जियों, बड़ाइयों, मालियों तथा घोड़ागाड़ी चालकों को अलग-अलग विशेष प्रशिक्षण दिया। उन्होंने जवान किसानों तथा अप्रशिक्षित कारीगरों को शिक्षा प्रदान की। जल्द ही उन्होंने स्वयं के लिए ’द्वितीय फिलिप नेरी’ का नाम कमाया। उन्होंने अपनी किताबें, सम्पत्ति, कपडे और खाने भी गरीबों को प्रदान किया। सन् 1835 में उन्होंने दो धर्मसामाजों की स्थापना की। उन्होंने कई मिशनरी प्रशिक्षण केन्द्रों की भी स्थापना की। 55 सल की उम्र में उनकी मृत्यु हुयी। उनके पार्थिव शरीर का दफ़न सान साल्वातोरे गिर्जाघर में किया गया। उन का पार्थिव शरीर आज भी हम उस गिरजाघर में देख सकते हैं। सन् 1963 में सन्त पिता योहन तेईस्वें ने उन्हें सन्त घोषित किया।