जनवरी 17

संत अन्तोनी, मठाध्यक्ष

सन्त अन्तोनी मठवाद के संस्थापक माने जाते हैं हालाँकि उन्होंने हमेशा समाज से दूर किसी समुदाय के बिना एक तपस्वी का जीवन बिताया। इस सन्त के बारे में हमें सन्त अथनासियुस के जीवन-चरित से जनकारी मिलती है।

मिस्र देश के एक कुलीन वंश के परिवार अन्तोनी का जन्म हुआ। जब अन्तोनी 18 साल के थे उनके माता-पिता चल बसे। उस समय उसकी छोटी बहन की देखरेख की ज़िम्मेदारी भी उनके कंधे पर रखी गयी। एक दिन उन्होंने गिर्जाघर में मत्ती 19:21 सुना – “यदि तुम पूर्ण होना चाहते हो, तो जाओ, अपनी सारी सम्पत्ति बेच कर गरीबों को दे दो और स्वर्ग में तुम्हारे लिए पूँजी रखी रहेगी, तब आकर मेरा अनुसरण करो।’’ वे तुरन्त गिर्जे से निकल कर घर गये और अपने तथा अपनी बहन के लिए ज़रूरी चीजों को छोड सब कुछ उन्होंने गरीबों में बाँट दी। कुछ दिन बाद उन्होंने गिर्जाघर में मत्ती 6:34 सुना – “कल की चिन्ता मत करो। कल अपनी चिन्ता स्वयं कर लेगा।“ इस पर उन्होंने अपना सब कुछ बेच डाला और अपनी बहन को एक मठ में छोड कर गाँव के बाहर जाकर प्रार्थना, उपवास और कठिन मेहनत में अपना जीवन बिताया।। उनका यह मानना था कि येसु से कुछ शिक्षा पाना पर्याप्त नहीं है, हमें उनका अनुकरण करना है।

अन्तोनी को विभिन्न प्रकार प्रलोभनों का सामना करना पडा। अपनी बहन के बारे में चिन्ता, सांसारिक सम्पत्तियों का लाभ उठा कर जीवन बिताने की इच्छा, संबन्धियों के साथ समय बिताने की इच्छा, अपनी सम्पत्ति का स्वयं अच्छे कार्यों के लिए उपयोग करने का विचार, नाम कमाने की इच्छा आदि उनकी शुरुआती परीक्षाएँ थी। इन प्रलोभनों पर विजय पाने पर शैतान ने अन्तोनी यह एहसास कराकर कि मैं कितना शक्तिशाली हूँ कि शैतान को भी मार सकता हूँ, चापलूसी की परीक्षा ली।

उनकी परीक्षा बढ़ती गयी। अन्तोनी और अधिक संयमी जीवन बिताना चाहता था। वह मरुभूमी में एक तपस्वी का जीवन बिताने लगे। वे किसी से कुछ बोलना नहीं चाहते थे। कई लोग उन से मिलने तथा उनकी आशिष पाने आते थे। उन्होंने यह अनुभव किया कि उनमें ईश्वर की शक्ति निवास करती थी और वे हमेशा ईश्वर से ही जुडे रहते थे। वृथावस्था में करीब 15 साल तक वे शारीरिक रीती से बहुत कमजोर हो गये थे। उस अवस्था में दो व्यक्ति उनकी मद्द करने हेतु उनके साथ रहते थे। उनकी मृत्यु उनके लिए गहरी शांति का अनुभव था।


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