ग्रिगरी दो संतों, बेसिल और एमिलिया का पुत्र थे। ग्रेगरी का पालन-पोषण उनके बड़े भाई, बेसिल महान और उनकी बहन, मैक्रिना ने आधुनिक तुर्की में किया था। अपने अध्ययन में ग्रेगरी सफल थे। बयानबाजी के प्रोफेसर बनने के बाद, उन्हें कलीसिया के लिए अपनी शिक्षा और प्रयासों को समर्पित करने के लिए प्रेरित किया गया। तब तक उनकी शादी हो चुकी थी। ग्रेगरी ने पुरोहिती प्रशिक्षण पाकर पुरोहित नियुक्त किये गए।
उन्हें सन 372 में निस्सा का धर्माध्यक्ष चुना गया। उस समय एरियन अपसिध्दान्त फैल रहा था जिसने मसीह की दिव्यता को नकार दिया था। कलीसिया के धन के गबन का झूठा आरोप लगा कर कुछ समय के लिए उनको गिरफ्तार किया गया परन्तु सन 378 में उनकी निर्दोषता का प्रमाण मिलने पर उनको छोड़ दिया गया।
अपने प्यारे भाई, बेसिल की मृत्यु के बाद ग्रेगरी और भी प्रभावशाली ढ़ंग से कार्य करने लगे। उन्होंने परम्परानिष्ठा (orthodoxy) के रक्षक के रूप में ख्याति प्राप्त करते हुए, एरियनवाद और अन्य संदिग्ध सिद्धांतों के खिलाफ बड़ी प्रभावशीलता के साथ लिखा। उन्हें अन्य विधर्मियों का मुकाबला करने के लिए मिशन पर भेजा गया था और उन्होंने कॉन्स्टेंटिनोपल की परिषद में प्रमुखता का पद धारण किया था। उनकी उत्कृष्ट प्रतिष्ठा उनके शेष जीवन के लिए उनके साथ रही, लेकिन सदियों से यह धीरे-धीरे कम हो गई क्योंकि उनके लेखन की लेखकता कम निश्चित हो गई थी। लेकिन, 20वीं सदी में विद्वानों के काम की बदौलत उनके कद की एक बार फिर सराहना हुई है। वास्तव में, निस्सा के संत ग्रेगरी को न केवल परम्परानिष्ठा के स्तंभ के रूप में देखा जाता है, बल्कि ख्रीस्तीय आध्यात्मिकता और स्वयं मठवाद में रहस्यमय परंपरा के महान योगदानकर्ताओं में से एक के रूप में देखा जाता है।