कुँवारी मरियम और संत यूसुफ़ को इस पर विचार या वाद-विवाद नहीं करना पड़ा कि अपने बच्चे को क्या नाम देंगे। ईश्वर ने उस बच्चे का नाम स्वयं रखा था। स्वप्न में ईश्वर के दूत ने यूसुफ़ के कहा, “आप उसका नाम ईसा रखेंगे” (मत्ती 1:21)। स्वर्गदूत गब्रिएल ने कुँवारी मरियम से कहा, “आप गर्भवती होंगी, पुत्र प्रसव करेंगी और उनका नाम ईसा रखेंगी” (लूकस 1:31) इस संबंध में संत लूकस फिर हम से कहते हैं, “आठ दिन बाद बालक के ख़तने का समय आया और उन्होंने उसका नाम ईसा रखा। स्वर्गदूत ने गर्भाधान के पहले ही उसे यही नाम दिया था” (लूकस 2:21)। येसु के जन्म के आठ दिन बाद उनका नामकरण हुआ था। इसलिए आज क्रिसमस के आठ दिन बाद हम यह त्योहार मनाते हैं।
यहूदी लोगों का यह मानना था कि ईश्वर का नाम इतना पवित्र है कि कोई भी अपने होंठों में उस नाम को लेने का योग्य नहीं है। अगर कोई ऐसा करता है, तो उसे ईश्वर की अवहेलना माना जाता था। लेकिन नये विधान में जब त्रिएक ईश्वर का दूसरा व्यक्ति मनुष्य बनता है, उनका नामे प्रकट हो जाता है और उस नाम को अपने होंठों में लेने का विशेषाधिकार सब विश्वासियों को दिया गया है।
प्रभु येसु के नाम में शक्ति है। प्रेरित-चरित में बार-बार प्रेरित येसु का नाम लेकर अपदूतों को निकालते हैं। संत पौलुस कहते हैं, “ ईसा का नाम सुन कर आकाश, पृथ्वी तथा अधोलोक के सब निवासी घुटने टेकें और पिता की महिमा के लिए सब लोग यह स्वीकार करें कि ईसा मसीह प्रभु हैं।” (फिलिप्पियों 2:10-11) सिएना के सन्त बेर्नादीन ने प्रभु येसु पावन नाम की भक्ति को बहुत बढ़ावा दिया। उन्होंने ही येसु के यूनानी नाम IHΣΟΥΣ से IHS नाम-चिह्न बनाया। सोलहवीं सदी में येसु समाजियों ने इस नाम-चिह्न को बहुत ही लोकप्रिय बनाया।
येसु शब्द का शाब्दिक अर्थ है – बचाना या मुक्ति दिलाना। ‘येसु’ उनका नाम था जबकि ’ख्रीस्त’ उनकी उपाधि या पदवी थी। ख्रीस्त का अर्थ है – अभिषिक्त या मसीह। जब हम प्रभु को ’येसु ख्रीस्त’ कहते हैं तो हम उन्हें ईश्वर के अभिषिक्त मुक्तिदाता मानते हैं।